राहुल
जाड़ों के मौसम में जब गांव की तस्वीर जेहन में तारी होने लगे तो सबसे पहले जो चित्र उभरता है, तो वह गदराई मटर, चने का खेत, अमरद का बगीचा और बगीचे में शुग्गा का टें टें । बात और आगे बढे़ तो पोखर और नदी तक जाती है। लेकिन हर गांव के नसीब में नहीं होता नदी। और नदी नसीब भी हो जायें तो सरहद का विवाद उसे इस तरह से उलझाए रहती है कि वह नदी होकर भी नहीं रह पाती नदी। सीमा विवाद इस कदर हावी हो जाता है कि वह उसे अपने अस्तित्व का ही संकट नजर आने लगता है। नदियां, पक्षी, पवन के झोकें कोई सरहद ना इनको रोकें...। भले ही सरहद इंसानों के लिए हो लेकिन ये सरहद आज इंसानों से ज्यादा नदियों को रोक रही हैं, फिर भी इंसानी जज्बात है कि मानता ही नहीं। वह बार-बार इन सरहदों को तोड़ना चाहता है यह अलग बात है कि वह तोड़ नहीं पाता।
सहादत हसन मंटो की भारत पाकिस्तान बटवारें पर एक कहानी है टोबा टेक सिंह। टोबा टेक सिंह पागल है और वह जेल में बंद है। जब भारत पाकिस्तान का बटंवारा होता है तो जेल पाकिस्तान के हिस्से में आ जाती है टोब टेक सिंह को जब यह बात पता चलता है तो वह पेड़ पर चढ़ जाता है और कहता है कि न तो मैं हिंदुस्तान में हूं और न ही पाकिस्तान में, मै तो पेड़ पर हूं। टोबा टेक सिंह किसी भी देश में नहीं रहना चाहता।
टोबा टेक सिंह की तरह ही एक गांव है चमथा। नहीं नहीं टोबा टेक सिंह की तरह नहीं बल्कि इसके एकदम उलट। बिहार का यह गांव न तो समस्तीपुर में है न ही बेगूसराय में न मूंगेर में और न ही पटना में। ऐसा नहीं है कि यह गांव किसी जिले में रहना ही नहीं चाहता। इस गांव की बदकिस्मती है कि इसको कोई अपनाना ही नहीं चाहता।
गंगा और बाय नदी से घिरा यह गांव चार जिलों के मुहाने पर है। समस्तीपुर, बेगूंसराय, मुंगेर और पटना से घिरे होने के कारण ही इस इसका नाम चमथा पड़ा। चमथा शब्द बना है चौमथ से जिसका अर्थ होता है चारों ओर से घिरा हुआ।
बड़खुट, छोटखुट, मांझिलखुट, संझापुर, गोपटोला, लक्ष्मण टोला, मंत्री टोला, नंबर टोला सहित कुल 22 टोलों वाला यह चमथा गांव तीन जिलों के तीन लोकसभा और तीन विधानसभा क्षेत्रों में पड़ता है। बड़खुट, छोटखुट और मांझीलखुट बेगूंसराय के बछवाड़ा विधानसभा में, मंत्री टोला समस्तीपुर के सरायरंजन विधानसभा और नंबर टोला पटना के मोकामा विधान सभा क्षेत्र में पड़ता है।
समस्तीपुर से 35 किमी की दूरी तय कर जब आप इस गांव में पहुंचेंगे तो स्वागत करने के लिए जहां से गांव की चैहद्दी होती है आम और कटहल के पेड़ आपस में गुत्थम गुत्थी करते नजर आएंगे। इनमें होड़ लगी रहती है कि आगंतुक का स्वागत सबसे पहले कौन करें। सिवान में लहलहाती फसल देखकर मन मयूरी हो जाता है। एक हवा का झोंका आता है और इन फसलों में कंघी करके चला जाता है। खेतों में लहलहाती यह हरियाली हर आने जाने वालों का स्वागत बड़े ही अपनेपन से करती है। इनको क्या पता कि विवाद कहां हैं। वैसे भी विवाद तो इंसानों में हैं वह भी नेताओं और नौकरशाहों द्वारा पैदा की गई। पेड़ों का झुरमुट पार कर जैसी ही आप गांव की आबादी में प्रवेष करेंगे तो आपको लगेगा ही नहीं कि आप ऐसे गांव में हैं जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहा है। चमथा तक पहुंचने के लिए जिस कच्ची सड़क से काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है उसके अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि बिहार में विकास का शोर चाहे जितना हो लेकिन इस गांव को देखकर लगता ही नहीं है कि विकास रूपी चिड़िया ने कभी यहां पर भी पर मारे हों।
पूरा गांव छान मारिए कहीं भी बिजली और टेलीफोन के तार का दर्शन नहीं होगा। गांव की गलियों में कहीं-कहीं खडंजे का दर्शन हो जाता है। अन्य गांव की तरह ही यहां के बच्चे भी दिया और लालटेन की रोशनी में ही काला अक्षर बाचा करते हैं। यादव और राजपूत बहुल यह गांव मिथिला संस्कृत के काफी करीब है। यहां होने वाले तीज त्यौहार एवं वैवाहिक कार्यक्रम बिल्कुल मिथिला की तरह ही मानाए जाते हैं। मिथिला के तरह ही उपनयन संस्कार का महत्व यहां भी ब्याह से अधिक है।
अपने वजूद के लिए जद्दोजहद करता यह गांव आजादी के 63 साल बाद भी नहीं समझ पा रहा है कि वह क्या करें। किसके आगे अपना दुखड़ा सुनाए। आज तक इसकी पुकार सुनकर किसी के कानों में कुलबुलाहट तक नहीं हुई।
bahut khoob, es article ne gaanv ki upechha batayi hai. umeed hai aisi story aur layenge aap.................
जवाब देंहटाएंjo halat is gaon ki hai waisi halat hindustan kya pure vishawa me kisi gaon ki nahi hogi. ek gaon aur 4 vidhansabha aur 4 he loksabha seat..... great country and great village....
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