पिछले माह पेज देखे जाने की संख्या

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

...जय बोलो बलवान की

कुल जिला पंचायत-72           
परिणाम घोषित-71

बसपा-55, सपा-10, कांग्रेस-02 , रालोद-02, जनवादी-01 , भाजपा-01

जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 39। प्रत्याशी का दावा कि 27 उसके साथ हैं। लेकिन लोकतंत्र का चमत्कार। बनारस में ऐन मौके पर अपना दल के प्रत्याशी अनिल पटेल ने नाम वापस ले लिया। परदे के पीछे के खेल पर मत जाइए। बस नतीजे की सोचिए। नतीजा है बसपा प्रत्याशी मधुकर मौर्य का निर्विरोध निर्वाचन। मधुकर मौर्य विधायक बंधु उदय लाल मौर्य और अनिल मौर्य के भतीजे हैं। यह कहानी किसी एक जिले भर की नहीं है। सूबे में यह पहला अवसर है जबकि जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में 23 प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। इन सभी निर्विरोध प्रत्याशियों की खूबी है कि वे सत्तासीन बसपा पार्टी के समर्थक हैं। सूबे के 23 जिलों में बसपा समर्थक उम्मीदवारों का निर्वाचन महज संयोग नहीं है।
सोशल इंजीनियरिंग के जरिए राज्य की सत्ता हासिल करने वाली बसपा ने इस बार जिला पंचायत चुनावों में नौकरशाही का सफल प्रयोग किया है। पार्टी पर आरोप है पंचायत चुनावों से पहले सूबे के आला अफसरानों की एक टीम बनाई गई थी जिसका काम जिलेवार बसपा उम्मीदवारों के जीत का मार्ग प्रशस्त करना था। नतीजन सूबे के 72 जिला पंचायतों में से 55 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बसपा समर्थकों को विजयी हुए। सपा ने दस जिलों में कब्जा जमा कर यह साबित किया है कि वह अभी भी  प्रमुख विपक्षी दल तो है ही, साथ ही विपरीत परिस्थितियों में सत्ताधारी दल से टकराने की कूवत उसमें अन्य दलों के मुकाबले अधिक है। कांग्रेस ने दो, भाजपा ने एक, रालोद ने दो और जनवादी पार्टी ने एक जिले में पंचायत अध्यक्ष पद पर जीत हासिल कर अपनी उपस्थिति बनाये रखी है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने जहां गृह जिले इटावा में पार्टी को विजय दिला कर प्रभुत्व कायम रखा, वहीं कन्नौज क्षेत्र में अखिलेश यादव सहित कई जिलों में सपा नेता अपनी प्रतिष्ठा बचाने में असफल रहे। कांग्रेस ने यूं तो जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी, फिर भी सोनिया गांधी के रायबरेली व राहुल की अमेठी के जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। लोकदल मुखिया अजित सिंह बागपत में और उनके बेटे जयंत चौधरी मथुरा में अपने प्रत्याशी को विजय दिलाने में कामयाब रहे। पूर्व मंत्री व प्रतापगढ़ की कुंडा विधान सभा क्षेत्र के विधायक रघुराज प्रताप सिंह का तिलिस्म भी इस बार टूट गया। काफी समय से जिले की पंचायत पर उनका दबदबा कायम रहता था लेकिन इस बार शासन की दंबगई के सामने वह भी नाकाम रहे।
माना जा रहा है कि इन चुनावों में सत्ता की हनक और ब्यूरोक्रेसी का भरपूर प्रयोग हुआ। विपक्ष का आरोप है कि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में सपा के जीत से बसपा हताश थी इसलिए अध्यक्ष का चुनाव येन केन प्रकारेण जीतना चाहती थी। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए बसपा ने हर जिले में पांच-छह करोड़ रुपये भेजे। जिसका उपयोग सदस्यों की खरीद फरोख्त में किया  यानी परदे के पीछे पैसे, पद, बल का जमकर चुनाव हुआ। परदे के पीछे के इस असली खेल के आगे चुनाव आयोग बौनी साबित हुई। इससे विपक्ष को राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर उंगुली उठानी शुरू कर दी। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने आरोप लगाया है कि चार-पांच को छोड़ प्रदेश के अधिकतर जिलों में डीएम और एसपी सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जिताने के लिए तमाम हथकंडे अपना रहे हैं। डीएम व एसपी जिला पंचायत सदस्यों को प्रमाणपत्र देने के बहाने बुलाकर उन्हें सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने के लिए धमका रहे हैं। बसपा उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने के लिए खुलेआम फरमान जारी कर रहे हैं, छापे भी मार रहे हैं। कानपुर के जिलाधिकारी ने सपा कार्यकर्ताओं की बैठक से पार्टी के उम्मीदवार को उठवा लिया और उस पर नामांकन का पर्चा वापस लेने के लिए दबाव बनाया। घटना के बारे में उन्होंने राज्य निर्वाचन आयुक्त से फोन पर शिकायत की लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। यह लोकतंत्र का मजाक है। मुलायम सिंह यादव ने कहा कि इसकी शिकायत केंद्रीय निर्वाचन आयोग से की जाएगी। 
 हर तरफ सत्ता की जय
प्रदेश के रामपुर वाराणसी, चन्दौली, बांदा, मेरठ, बुलन्दशहर, बिजनौर, ज्योतिबा फुलेनगर, कांशीरामनगर, हमीरपुर, कौशाम्बी, उन्नाव, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोरखपुर, कुशीनगर, गौतमबुद्धनगर, महोबा गाजियाबाद व सीतापुर में बसपा समर्थक उम्मीदवारों का निर्विरोध निर्वाचन हुआ है। लखनऊ में विधान परिषद सदस्य राम चंद्र प्रधान के भाई धर्मेन्द्र के खिलाफ कोई खड़ा नहीं हुआ। यहां सपा के घोषित उम्मीदवार पर्चा दाखिल करने ही नहीं गए। इतना ही नहीं सपा समर्थक सुनीश मौर्य बसपा प्रत्याशी धर्मेंद्र के प्रस्तावक बन गए। उन्नाव में पाला बदल हुआ। पिछले चुनाव में सपा के सांसद रहे जय प्रकाश रावत अब बसपा के राज्यसभा सदस्य हैं और उनकी पत्नी ज्योति रावत इस बार भी निर्विरोध हैं। वन मंत्री फतेहबहादुर सिंह की पत्नी साधना सिंह गोरखपुर में निर्विरोध चुनाव जीत चुकी हैं। पूर्व सांसद रिजवान जहीर की पत्नी हुमा रिजवान भी बलरामपुर में निर्विरोध जीती हैं। जाहिर है कि ऐसा किसी प्रत्याशी विशेष के प्रति श्रद्धा की वजह से नहीं हुआ बल्कि यह सत्ता की हनक थी। जो ताकतवर रहे, उन्होंने अपने ढंग से योंजना बनाई और राह के श्कांटोंश् को नियोजित ढंग से दूर भी किया।
ऐसा सिर्फ इस बार ही नहीं है। पिछले बार सपा का शासन था और तेरह प्रत्याशी निर्विरोध थे। इनमें आठ के खिलाफ तो किसी ने परचा तक नहीं भरा था, पांच ने बाद में नाम वापस ले लिया। 69 जिलों के चुनाव में सपा ने 46 पर जीत हासिल कर ली थीं। तत्कालीन पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री महबूब अली अपनी पत्नी सकीना बेगम को चुनाव जिताने में सफल रहे थे। तब के उद्यान मंत्री राजकिशोर सिंह की मां शारदा सिंह बस्ती से चुनाव जीती थीं। इसके साथ ही हरदोई में नरेश अग्रवाल के भाई मुकेश अग्रवाल और तब सपा के सांसद रहे जयप्रकाश रावत की पत्नी ज्योति उन्नाव से चुनाव जीती थीं।
हाल ही में संपन्न ग्राम पंचायत चुनावों में बसपा ने भले ही पार्टीबाजी पर रोक लगा दी हो लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में निर्विरोध निर्वाचन का दम भरने से खुद को नहीं रोक सकी। दूसरी पार्टियों के परिवारवाद को कोसने वाली बसपा सुप्रीमों ने सूबे में शक्ति हासिल करने के लिए पार्टी में व्याप्त परिवारवाद व भाई भतीजावाद को भी नजरदांज कर दिया। नतीजन गोरखपुर से मंत्री फतेहबहादुर की पत्नी साधना सिंह, बाराबंकी से मंत्री संग्राम सिंह के भाई की पत्नी शीला सिंह, देवरिया से दर्जा मंत्री श्रीनाथ की पत्नी बालेश्वरी, बदायूं से विधायक डीपी यादव के साले की पत्नी पूनम यादव, मुजफ्फरपुर से विधायक शाहनवाज राणा की पत्नी इंतखाब राणा, उन्नाव से सांसद जयप्रकाश रावत की पत्नी ज्योति रावत, हरदोई से सांसद नरेश अग्रवाल के भाई की पत्नी कामिनी अग्रवाल, वाराणसी से विधायक उदय मौर्य के भतीजे मधुकर मौर्य, आगरा से विधायक भगवान सिंह कुशवाहा के पिता दौलतराम, फरूखाबाद से विधायक ताहिर हुसैन, फिरोजाबाद से विधायक प्रमोद कुमार, रामपुर से मंत्री अकबर हुसैन के दामाद अब्दुल सलाम, प्रतापगढ़ से मंत्री स्वामी प्रसाद के भतीजे प्रमोद मौर्य ने अध्यक्ष पद की कुर्सी हासिल की। इन नतीजों से साफ है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस।
सूबे में भले ही सबसे ज्यादा जिला पंचायत सदस्य सपा के जीते हों लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष की अधिकतर कुर्सी पर बसपाई ही बैठेंगे। काबिलेगौर है जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव यही सदस्य करते हैं। आखिर बैठे भी क्यों न, जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। जाहिर है कि लोकतंत्र के पहिए को श्रसूखवालोंश् ने अपने ढंग से नचाया। एक दूसरा सच यह भी है कि हर जिले में जिला पंचायत सदस्य उनकी धुन पर नाचने को आतुर भी दिखे। कानपुर नगर का ही उदाहरण लें। कानपुर नगर में सपा समर्थित उम्मीदवार योगेन्द्र सिंह ने समय सीमा के बाद नाम वापस लिया, जिस पर परिवारवालों की ओर से थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई और जिला निर्वाचन अधिकारी को सूचित किया गया कि कुछ लोगों ने योगेन्द्र सिंह को जबरन रोक लिया था, इसलिए वह समय पर नाम वापस लेने नहीं पहुंच पाये थे। सपा के समर्थन से चुनाव लड़ रहे योगेंद्र सिंह ने महज कुछ घंटों में चुनाव लड़ने का अपना इरादा बदल दिया। मामला विवादास्पद है, लेकिन यह तो साफ हो ही जाता है कि सियासी निष्ठाएं गिरगिट की तरह रंग बदलती रहीं। बड़े से बड़े दल भी अपनों भरोशा न कर सके। सिद्धार्थनगर में बसपा समर्थित उम्मीदवार प्रमोद कुमार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया। यहां पर साधना चौधरी का नामांकन पत्र इसलिए खारिज कर दिया था, क्योंकि उनके नाम का प्रस्तावक व समर्थक ने खुद के दिखाए हस्ताक्षर को जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष उपस्थिति होकर फर्जी बता दिया। इसके पहले साधना चौधरी ने अपने इन प्रस्तावकों के अपहरण का आरोप लगाया था।
इन पंचायत चुनावों में सत्ता की हनक इस कदर हावी रही कि अदालत को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ा।  इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य निर्वाचन आयोग ने मथुरा के डीएम एनजी रविकुमार, जो जिला निर्वाचन अधिकारी भी हैं को तत्काल हटाने और वहां नया डीएम तैनात करने का आदेश दिया। मथुरा के मिथलेश कुमार तथा अन्य ने न्यायालय में याचिका दायर करके अनुरोध किया था कि मथुरा के डीएम को हटाया जाए क्योंकि परिचय पत्र देने के बहाने वह पंचायत सदस्यों को अपने आवास पर बुला रहे हैं और उन्हें डरा धमकाकर सत्तारूढ़ समर्थित उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने का दबाव डाल रहे हैं। आयोग ने हाईकोर्ट के आदेश पर बाराबंकी में केन्द्रीय सुरक्षा बल के साये में मतदान और मतगणना कराने का निर्देश दिया। यहां पर कुछ लोगों ने याचिका दायर करके आरोप लगाया था कि प्रदेश के एक मंत्री के दबाव में स्थानीय पुलिस बसपा कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही है और बसपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिए धमका रही है। इसलिए स्थानीय पुलिस को चुनाव प्रक्रिया से अलग रखा जाए। अदालत ने आयोग को निर्देश दिया कि वहां पर चुनाव केन्द्रीय बल की सुरक्षा में कराया जाए तथा स्थानीय पुलिस को मतदान एवं मतगणना स्थल से 200 मीटर दूर रखा जाए। इस चुनाव में नवनिर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों को पहचान पत्र देने को भी लेकर कई जिलों से आयोग को शिकायत प्राप्त हुई थी। इस पर आयोग ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि पहचान पत्र देने के साथ सदस्यों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिला निर्वाचन अधिकारी की होगी। अगर कोई सदस्य परिचय पत्र लेने नहीं आया है तो उसे मतदान करने से रोका नहीं जाए। बिना परिचय पत्र के ही मतदान करने की अनुमति देने का कहा गया है और कहीं किसी प्रकार का संदेह हो तो पूर्व में उसके द्वारा दाखिल नामांकन पत्र के हस्ताक्षर से मिलना किया जा सकता है। किसी मतदाता के साथ उसकी मर्जी के बिना सहायक ले जाने की इजाजत भी आयोग ने नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य निर्वाचन आयोग ने एटा के जिलाधिकारी को चुनाव परिणाम स्थगित रखने के निर्देश दिये हैं। आयोग के अनुसार एटा के जिला पंचायत अध्यक्ष जुगेंद्र सिंह यादव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि चूंकि पांच साल का उनका कार्यकाल 14 जनवरी को पूरा होगा इसलिए तब तक के लिए अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव परिणाम स्थगित रखे जाएं। इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को चुनाव प्रक्रिया न रोककर जिला पंचायत का कार्यकाल पूरा करने के आदेश दिये। पंचायत चुनावों में सत्ता की दबंगई भले ही जनता के चुने प्रतिनिधियों पर लागू हो गई लेकिन देखना है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या यह जनता पर भी लागू होगी या फिर जनता का पलटवार चलेगा।
 

1 टिप्पणी:

  1. sir, there is no democresy.all minister fall in avarice and making prey the citizen. fallow the maul approch by dalit cm mayawti. descrimination moat between lower n upper class growing. there no law and order, police rolled as ogre for poor peole. they try tramled. this goverment does not go overdo.

    जवाब देंहटाएं